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पंचतत्वों की व्यख्या दो हो सकती है। पहला डी. एन. ए. (DNA) और आर. एन. ए. (RNA) के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले योगिक १. एड्निन (Adenine) २. गुआनीन (Guanine) ३. साइटोसीन (Cytosine) ४. थाईमिन (Thiamine) और ५. यूरेसिल (Uracil)। दूसरो उपरोक्त सभी यौगिकों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले तत्व कार्बन (Carbon), हाइड्रोजन (Hydrogen), ऑक्सीजन (Oxygen), नाइट्रोजन (Nitrogen) और सल्फर (Sulfur)।
पंचतत्वों का जिक्र है। जिसमें १. पृथ्वी २. जल ३. आकाश ४. अग्नि एवं ५. वायु है। अलग-अलग लोग अपने अपने तरीके से इसकी व्याख्या करते हैं। चूंकि वेद पुराण की रचना हुए हजारों वर्ष बीत गए हैं, अतः इसमें वर्णित तथ्यों और ज्ञान की सटीक जानकारी मिलना बेहद कठिन प्रतीत होता है।
अक्सर यह कहा जाता है, जिसमें काफी कुछ सत्य भी है कि वेद, विज्ञान का ही रूप है। वेदों में वर्णित तत्व पूर्ण विज्ञान पर आधारित ही हैं। आज विज्ञान इतना आगे निकल चुका है कि नयी नयी जानकारियां आये दिन हम सभी को आश्चर्य में डालती हैं।
विज्ञान द्वारा की जाने वाली नयी नयी खोजें कई बार हमारे धर्म ग्रंथों में वर्णित तथ्यों से मिलती हुई प्रतीत होती हैं। मसलन हमारे धर्म ग्रन्थों में सूर्य को सात घोड़ों की सवारी करने वाला देवता बताया गया है और विज्ञान ने जब यह सिद्ध किया कि सूर्य में सात प्रकार की किरण पाई जाती हैं, तो अपने धर्म ग्रंथों के प्रति हमारी आस्था और उनके प्रति हमारा विश्वास बढ़ गया है और हम यह मानने को विवश हुए हैं कि हिन्दुओं के प्रमुख धर्म ग्रन्थ उन्नत विज्ञान की ही व्याख्या अपने ढंग और अपनी भाषा में कर बहुत पहले ही कर चुके हैं।
इन्ही बातों पर एक बार विचार आया कि पंचतत्व से शरीर के निर्माण में भी यह तथ्य हो सकता है। विज्ञान के अनुसंधानों से यह बात सबित हो कि किसी भी जीव के शरीर निर्माण में कोशिका (primitive/mature) ही मुख्य और सबसे मूल इकाई है। कोशिका को बेसिक यूनिट ऑफ़ लाइफ (basic unit of life) कहा जाता है। कोशिका से ही किसी भी शरीर का निर्माण होता है, चाहे वह पशुओं के हों अथवा पेड़ पौधों या कीड़े मकौड़ों की।
अब कोशिका का निर्माण कैसे होता है? यह होता है कोशिका में उपस्थित केंद्रक (nucleus (primitive / mature) से। इस केन्द्रक के भीतर या कोशिका में दो तरह के नुक्लिक अम्ल (Nucleic acids) पाए जाते हैं, जिन्हें डी. एन. ए. और आर. एन. ए. (D.N.A & R.N.A.) के नाम से जाना जाता है। पूरी जीव संरचना में इन्हीं नुक्लिक अम्लों का योगदान है। बिना इनके कोई भी जीव की शारीरिक संरचना संभव नहीं है। ये ही तत्व हमारे शरीर के अंदर की सारी क्रियाओं को संचालित और नियंत्रित भी करते हैं।
पंचतत्वों की एक परिभाषा यह भी हो सकती है। पर ये सारे जटिल यौगिक हैं।
धर्मग्रंथों में तत्वों की बात कही गयी है। यहाँ तत्वों की बात करें तो ये सारे यौगिकों (एड्निन, गुआनीन, साइटोसीन, थाईमिन और यूरेसिल) के मूल तत्व (जिनसे ये सारे बने हैं) भी केवल पांच ही तत्व हैं, जिनसे ये सारे (पांचों) बने हैं, वो हैं कार्बन (Carbon), हाइड्रोजन (Hydrogen), ऑक्सीजन (Oxygen), नाइट्रोजन (Nitrogen) और सल्फर (Sulfur)।
पंचतत्वों की व्याख्या दो हो सकती है। पहला डी. एन. ए. (DNA) और आर. एन. ए. (RNA) के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले यौगिक १. एड्निन (Adenine) २. गुआनीन (Guanine) ३. साइटोसीन (Cytosine) ४. थाईमिन (Thiamine) और ५. यूरेसिल (Uracil) और दूसरा उपरोक्त सभी यौगिकों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले तत्व कार्बन (Carbon), हाइड्रोजन (Hydrogen), ऑक्सीजन (Oxygen), नाइट्रोजन (Nitrogen) और सल्फर (Sulfur)।
पंचतत्वों से ही बना है, जिसको आज विज्ञान द्वारा भी हम यह साबित कर सकते हैं कि शरीर निर्माण में केवल पंचतत्व ही सम्मलित हैं। इस जानकारी से हमारा विशवास अपने धर्म ग्रंथों पर प्रगाढ़ होने का एक और अवसर मिल गया।
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